Saturday, 15 February 2014

हर्ज़ और हसरतें

Thanks to a dear friend for sharing her lovely English Poems. Some translations...


I
इस महीने, तुम्हारे रूखे शहर
झील जमे, इससे पहले, 
चटकती बर्फ़ के दायरों में 
समेटती खुद को, भर लेती हूँ
सर्द ख़ामोशी कि आह !


II
जबसे तुम गए 
नदी सिमट गयी 
आकाश तार-तार हुआ  
और जंगल ख़ाक़ । 
अब मैं,
अपनी ख़ामोशी को खुरचती,
पुकारती हूँ,
संजोयी चाहतों के साथ,
तुम्हारा नाम ।


III
तैरती हुई,
तुम्हारी आवाज़ पर फिसलती,
अपनी हंसी में तुम्हारी बुनते हुए,
तुम्हारी चुप्पी को दुलारती,
बिखरी हुई तुम्हारी निगाह को संभालती हूँ मैं, 
पर हर सुबह,
मेरे बिस्तर से चुरा लेते हों लफ़्ज़ तूम ।


IV
तुम्हारे लफ्ज़ों पर उंगलियां फेरते हुए 
ढूँढती हूँ दरारें कि ठहर सकूँ
छह सालों में सात बार 
रुके तुम, 
पर मैं अब भी 
झूझती हूँ कि जुदा हो सकूँ ।