Sunday, 14 June 2009

गर्मी

झुलसा सा दिन,
और उमस भरी रात;
आम के पत्तो में,
ओस बेठी उदास;
फिर क्या था,
कव्वो ने भी;
चुप्पी साधी,
मैना का अब;
संगी न साथी,
आँगन में;
मूढा भी तुनका,
मुश्किल है अब;
खाना फुल्का,
पानी का भी;
राशन होता,
बिजली बचत का;
भाषण होता,
गर्मी में सब;
यही फरमाते,
कब हो बारिश,
कब निकले छाते!

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