ख्वाहिश की हाथ पर,
मेरा भी कोई चाँद हो;
रुख से नकाब हटे,
बेपर्दा मेरा भी ख्वाब हो,
बेपनाह चाहतो का,
बेपनाह चाहतो का,
काफिला तो साथ है;
मुख्तसर सी है मगर,
कैसे कहूं क्या बात है
आईने में जो देखा,
रकीब मेरा वो नही;
फासलो की हसरतो में,
अब करीब कोई नही;
दूर बेठे हंस रहे तुम,
पास आते क्यूँ नही?
क्या समझा, ख़ुद से अलग
मुझको, तुमने हयात है?
मुख्तसर सी है मगर,
कैसे कहूं क्या बात है
रात बहती जाए पर,
ठहरे कहाँ जज़्बात हैं!
मुख्तसर सी है मगर,
कैसे कहूं क्या बात है
आईने में जो देखा,
रकीब मेरा वो नही;
फासलो की हसरतो में,
अब करीब कोई नही;
दूर बेठे हंस रहे तुम,
पास आते क्यूँ नही?
क्या समझा, ख़ुद से अलग
मुझको, तुमने हयात है?
मुख्तसर सी है मगर,
कैसे कहूं क्या बात है
रात बहती जाए पर,
ठहरे कहाँ जज़्बात हैं!
3 comments:
Bahut Khoob!!
beautiful !!!
Beautiful.
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