Saturday, 14 March 2009

कैसे कहूं?

photo by Pawas Bisht

ख्वाहिश की हाथ पर,
मेरा भी कोई चाँद हो;
रुख से नकाब हटे,
बेपर्दा मेरा भी ख्वाब हो,
बेपनाह चाहतो का,
काफिला तो साथ है;
मुख्तसर सी है मगर,
कैसे कहूं क्या बात है
आईने में जो देखा,
रकीब मेरा वो नही;
फासलो की हसरतो में,
अब करीब कोई नही;
दूर बेठे हंस रहे तुम,
पास आते क्यूँ नही?
क्या समझा, ख़ुद से अलग
मुझको, तुमने हयात है?
मुख्तसर सी है मगर,
कैसे कहूं क्या बात है
रात बहती जाए पर,
ठहरे कहाँ जज़्बात हैं!

3 comments:

Priya Ranjan said...

Bahut Khoob!!

gunjan said...

beautiful !!!

Pawas said...

Beautiful.