Wednesday, 27 May 2009

फ़िर मतदान!

लो ये भी कोई बात हुई,
दो साल बाद बिनायक सेन
बेल पे आजाद हुए;
और जावेद इकबाल नज़रबंद,
भोपाल को कमीशन का
वायेदा मिला,
और छत्तीसगढ़ को सलवा जादुम;
आजाद भारत में,
तिब्बत की आज़ादी का उड़ा माखौल;
सरकारी कारयालो में
अब इंसानी जिंदगी का तौल मौल,
फ़िर भी हर बार होता है;
जुनून-ऐ- नया दौर,
और तमाम राजनैतिक दल
करते हैं बहुत शोर,
आख़िर किस की सरपरस्ती में देश चला;
राहुल से लेकर मायावती तक,
बताओ तो यहाँ कौन है भला;
जंतर मंतर पे कार्बाईड की गैस खाया;
बच्चा आठ महीनो तक
प्रधानमंत्री के दर्शन को रोता है,
लेकिन उनसे मिलने का अहो भाग्ये तो
केवल टाटा-दोउ-अम्बानी को सुलभ होता है,
फ़िर भी ब्लैकमेल प्रूफ़ हो इतिहास ख़ुद को दोहराता है;
आम आदमी खाली हाथ किस्मत कोसता रह जाता है,
और शून्ये से शुरआत हो जैसे;
युवा भारत पे टकटकी लगाता है

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