Sunday, 31 May 2009

तुम?

अच्छा तो अब,
अठकेलियाँ करती रातो के साथ
तुम भी इठलाते हो?
माना बहुत तेज हो,
बहती हवा जैसे;
पल में धुआं सा उड़ जाते हो,
लाख बार समझाने पर भी;
मन की ओट में;
अपनी जगह बनाते हो,
हाँ हाँ जानती हूँ,
तुम नखरा नही दिखाते,
पर सामने भी तो नही आते,
बस धीमे से;
उँगलियाँ चटखाते हो,
जानते हो,
मैंने चंदा से भी शिकायत की थी;
और तारो ने भी पहरेदारी की,
आख़िर कौन हो तुम
जो नैनो में
मस्तियाँ भर जाते हो?

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