ये फुरसतों का दौर है
ना ज़ार है, ना ज़ोर है
ये तंग रात पहेलियाँ
हमनवा हथेलियाँ
ये गुमशुदा हालात है
चंद हाथ थम गई
वफ़ा की वो सौगात है
तलाशियां हुई जहाँ
सिलसिले ना रुक सके
जो मय कदम बढ़ चले
उस मुफलिसी का दौर है
उस मुफलिसी का दौर है
यहाँ मुखबिरो का शोर है
ना आम है, ना आदमी
ना राहतो को आज़मी
निजाम की ये हरकतें
तंग हसरतो का जाल है
तंग हसरतो का जाल है
फिराक ना, विसाल ही
उस इश्क का ज़माल है
जो मुश्क की मिसाल है!
जो मुश्क की मिसाल है!
2 comments:
hey Shalini.....nice blog....with wonderful poems....can you tell me how you write in devnagri in computer....??
hey priyanka, i just emailed you the details.
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