लन्दन के कमरे में
४ * २ की खिड़की
टकटकी बाँध के निहारती
एक अदद सड़क
किंग्स क्रॉस से एंजेल जाते लोग;
कहीं जाते, कहीं से आते लोग
सुबह भी, शाम भी, रात में भी;
जागती सी सड़क
बादलो की छेड़छाड़,
हवाओं से तकरार,
बारिशो में
पानी झटक,बिजली सी दौड़ती कारो से;
पंगे लेती
लड़ कर, झगड़ कर
पैदल राहगीर को थाम,
साइकिल को भी जगह देती
पेंटोंविल्ले सड़क,
अब इस सड़क से पहचान लगती है
कुछ खास, कुछ आम, तमाम बात लगती है
1 comment:
hmmm ...
sadgi bhari kavita !!
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