सर्दियो की हसीं रात थी;
चाँद घुमने निकला,
और चांदनी भी साथ थी;
ताज़ी हवा जैसी उसकी तासीर भी;
मदमस्त आँखें; और मस्ती भरे दिल की
कुछ शरारत से चाँद ने;
थामी उसकी कलाई,
चांदनी थोड़ा झिझकी; थोड़ा शरमाई,
चाँद बोला;
ऐसा क्या है, हर रोज़
रात भर चक्कर काट ;
क्यूँ तुम्हारे ही पास आता हूँ?
सब जगह ढूँढू, पर सुकून यहीं पाता हूँ?
चांदनी चुप थी,
हाथो में हाथ ले
आँख नीची; सांसो को बांधे;
थोड़ी लजायी;
थोड़ी सिमटी सी,
चाँद को निहारती रही,
मानो उसका बोलना ही;
उस रात की खुबसुरती थी
चाँद ने फ़िर कहा,
'बोलो तो;
कुछ जवाब तो दो'
चांदनी चुप रही
'देखो तुम्हारे हाथ में;
मेरा ही नाम लिखा है,
दुआ में जो उठे वो,
उनमें मेरा ही चेहरा खिला है'
चांदनी की चुप्पी से;
चाँद रूठ कर बोला,
'कुछ कहो तो?
तुम्हारे लिए ही,
मैंने हर हद तोड़ दी;
तुम्हे रिझाने को,
हर सूरत भी मोल ली;
इश्क में जहाँ सख्त
रस्मो रिवाजो का साया है,
कहाँ हर चाँद ने चांदनी को अपनाया है?
जानकर, चाँद समझेगा नही
चांदनी बोली,
'लफ़्ज़ो में कह दूँ,
ऐसा तो ये राज़ नही;
चार मिसालो में बयान हो;
ऐसा ये साथ नही;
पर्दों मैं बाँध कर हया की मंजिले
चाहते हो, ये मेरा मुस्तकबिल बने?
जिन रस्मो को तुमने लिखा
उन्हीं में तो बंधी हूँ
शिकायत फ़िर भी मुझसे
क्यूँ मैं चुप खड़ी हूँ
इश्क का कोई बयानमा नही
तुम हो यहाँ, और मैं भी यहीं;
इसी पल में जो ख़ामोशी थमी
वही है धडकनो की लुक्का छुप्पी'
चाँद घुमने निकला,
और चांदनी भी साथ थी;
ताज़ी हवा जैसी उसकी तासीर भी;
मदमस्त आँखें; और मस्ती भरे दिल की
कुछ शरारत से चाँद ने;
थामी उसकी कलाई,
चांदनी थोड़ा झिझकी; थोड़ा शरमाई,
चाँद बोला;
ऐसा क्या है, हर रोज़
रात भर चक्कर काट ;
क्यूँ तुम्हारे ही पास आता हूँ?
सब जगह ढूँढू, पर सुकून यहीं पाता हूँ?
चांदनी चुप थी,
हाथो में हाथ ले
आँख नीची; सांसो को बांधे;
थोड़ी लजायी;
थोड़ी सिमटी सी,
चाँद को निहारती रही,
मानो उसका बोलना ही;
उस रात की खुबसुरती थी
चाँद ने फ़िर कहा,
'बोलो तो;
कुछ जवाब तो दो'
चांदनी चुप रही
'देखो तुम्हारे हाथ में;
मेरा ही नाम लिखा है,
दुआ में जो उठे वो,
उनमें मेरा ही चेहरा खिला है'
चांदनी की चुप्पी से;
चाँद रूठ कर बोला,
'कुछ कहो तो?
तुम्हारे लिए ही,
मैंने हर हद तोड़ दी;
तुम्हे रिझाने को,
हर सूरत भी मोल ली;
इश्क में जहाँ सख्त
रस्मो रिवाजो का साया है,
कहाँ हर चाँद ने चांदनी को अपनाया है?
जानकर, चाँद समझेगा नही
चांदनी बोली,
'लफ़्ज़ो में कह दूँ,
ऐसा तो ये राज़ नही;
चार मिसालो में बयान हो;
ऐसा ये साथ नही;
पर्दों मैं बाँध कर हया की मंजिले
चाहते हो, ये मेरा मुस्तकबिल बने?
जिन रस्मो को तुमने लिखा
उन्हीं में तो बंधी हूँ
शिकायत फ़िर भी मुझसे
क्यूँ मैं चुप खड़ी हूँ
इश्क का कोई बयानमा नही
तुम हो यहाँ, और मैं भी यहीं;
इसी पल में जो ख़ामोशी थमी
वही है धडकनो की लुक्का छुप्पी'
3 comments:
Liked the simplicity .At the end ,the way Chandani expresses herself was quite impressive !!
keep it up Shalini !!
Ps: I wanna learn writing Hindi-Poetry but real difficult job for me !!
A beautifully narrated ocnversation 'Chand ki Chandani'.
Amazing!
@Darshan:- You are a fabulous writer yourself. I look forward to be able to write hindi prose as well as you do :)
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