कभी,
नानी के गाँव
घर की मुंडेर पर
मटर गश्ती करते
कबूतरों
को उडाती, चिडाती
मैं;
तभी
मुझे
नन्ही गोलमटोल
आँखो से टुकर टुकर
डराते वों
अब,
बिजली के तारों पर
कतारबंध बैठे
कबूतर
मुझे देख रहे हैं;
और,
खिड़की के इस पार
टुकर टुकर
मैं उन्हें देख रही हूँ...
नानी के गाँव
घर की मुंडेर पर
मटर गश्ती करते
कबूतरों
को उडाती, चिडाती
मैं;
तभी
मुझे
नन्ही गोलमटोल
आँखो से टुकर टुकर
डराते वों
अब,
बिजली के तारों पर
कतारबंध बैठे
कबूतर
मुझे देख रहे हैं;
और,
खिड़की के इस पार
टुकर टुकर
मैं उन्हें देख रही हूँ...
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