चिकनी-मिट्टी जैसे उन्हें मैं ढाल सकता हूँ
मेरे पास हैं भाषाएँ, साहित्य
मधु मास तले आँगन पे,
बारिशों जैसे, वो भी भिगा जाते हैं मन और बहुत कुछ --
पहले भीगे हुए, जिनके पास समय की कमी है,
और नए जिनके पास कहानियों की ।
समय के साथ, वो भी निकल आए हैं
मौसमों और कोहरों की तरह, रहने हमारे पास ।
मेरे पास हैं धुनें भी, क़िताबे
केंचुओं के खून से छाल पर लिखी हुई;
वो अलग हैं,
स्वछंद, मेरे सीने में छुपी नदियों की भाँति
कहावतों से भरी,
उदास, फिर भी प्रचंड ऊर्जा से उमड़ती हुईं
विरह में गाती कोयलों की भाँति
बेनाम, पहाड़ियों के परे
जहाँ नदियाँ और बरसात जन्म लेतीं हैं
बहने के लिए कहानियाँ, प्राण बनकें।
मेरा इतिहास अलग है,
दादियों, नदियों, पहाड़ियों, हरे पेड़ों के पीछे से गाने वाली कोयलों
और सत्रह विजयों से परिभाषित ।
मेरे शब्द: उनमें दंतकथाएं हैं ।
जैसे मेरी रगो में बहती है चाय-पत्ती
रक्त नहीं ।
कहानियाँ, पिछली कब्रों से बोलते नवजात शिशुओं की
और, नींबू, लौकी, कुमुद बन पिछवाड़े गाने वाली लड़की की ।
और मैं अभी भी प्रतीक्षा में हूँ एक स्नेहपूर्ण आलिंगन की,
मोर की तरह बेक़रारी में सूखता, मेरा गला ।
मेरी जमीन से निकलती सारी नदियाँ
बरसातों भरी दंतकथाएँ,
मेरी प्यास नहीं बुझा सकती,
मुझे चाहिए तुम्हारा प्रेम
क्या तुम नहीं देख सकते,
मैं अलग हूँ ?
मेरे पास भी हैं शब्द,
भाषाएँ, साहित्य
और कथाएँ तुम्हे बताने को
क्या तुम उत्सुक हो सुनने को, थोडा भी ?(thanks to Samhita Barooah)
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