Tuesday, 8 October 2013

एक बूढ़ा कहानीवाचक

tr. from Naga poet Temsula Aao's English Poem 'The Old Storyteller', from The Oxford Anthology of Writings From North-East India, pg. 83-86, 2011.


मैंने यह सोच अपनी ज़िन्दगी जी
कि कहानी कहना मेरी महान परंपरा है ।

वो जो मुझे मिली
मेरे दादा से
बनी मेरी ख़ास निधि
और जो मैंने इकटठा की
अन्य इतिहासकारों से
जुडी इस विद्या में ।

जब मेरा समय आया, मैंने कही कहानियाँ ।

जैसे वो मेरे खून में बहती हों
क्यूंकि हर वर्णन पुनर्जीवित करता है
मेरे प्राण
और हर कहानी मजबूत करती है
मेरे जातीय संस्मरण ।

उस क्षण की कहानियाँ
जहाँ हम छह पत्थरों से टूट कर बने और
कैसे पूर्वजों ने स्थापित किये
एतिहासिक गाँव और
पूजा प्रकृति को ।

योद्धा और बाघ-बहादुर
जाग जाते हैं इन किस्सों में
और वो सारे जानवर भी
जो थे हमारे भाई, तब तक
जब तक,
ना ईजाद कर ली हमने मानवीय भाषा
और कहने लगे उन्हें जंगली ।

दादा ने लगातार चेताया था
कि कहानियाँ भूल जाना
होगा विनाशकारी:
खो देंगे हम अपना इतिहास,
अधिकार, और निस्संदेह
अपनी मौलिक पहचान।

इसीलिए मैंने कही कहानियाँ
मेरी जातीय जिम्मेदारी के स्वरुप
सिखाना युवाओं को
आस्तित्व और जरूरी प्रथाओं को सँभालने की कला
जो मिल सके दूसरी पीढ़ी को ।

पर अब आ गया है नया जमाना 
विस्थापित करता वो सब जो है पुराना ।

मेरे अपने पौते नकारते है
हमारी कहानियाँ मानो हो सदियों पुरानी बकवास
व्यर्थ आज, तमाम
और पूछते हैं
किसे चाहिए टेढ़ी मेढ़ी कहानियाँ
जब क़िताबों से चल सकता है काम ?

मेरे अपनों के इनकार ने
रोक दिया है बहाव
और कथाएँ लौटने लगी हैं
मन की दुर्गम गुफाओं मे
जहाँ कभी गूंजती थी कहानियाँ
अब बसती है अकल्पनीय ख़ामोशी।

तो जब याददाश्त डगमगाने लगती है
और शब्द लड़खड़ाने
तब मुझे जीत जाती है एक पाशविक लालसा 
खींच लेने की
उस पहले कुत्ते से उसकी हिम्मत*
और सौंप देने की, उसकी आँतों में छुपी लिपि को,
मेरी सारी कहानियाँ ।

(* ओ-नागा समुदाय के अनुसार कभी उनके पास एक चमड़े पर अंकित लिपि/ आलेख था जिसे एक दिवार पर टांगा गया था ताकि सब उससे पढ़ और सीख सकें । पर, एक दिन एक कुत्ता उसे खींच कर खा गया । तबसे, लोगों का कहना है कि उनके जीवन का हर पहलू -- सामाजिक, राजनीतिक, ऐतिहासिक, और धार्मिक -- मौखिक प्रथाओं द्वारा जन स्मृति का हिस्सा रहा है ।)

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