Friday, 11 April 2014

बॉर्डर

tr from Bampada Mukharjee's English tr of Narendra Debbarma's poem in Kokborok, 'The Border'.  From The Oxford Anthology of Writings From North-East India, pg.101, 2011.

हम खड़े थे, कस्बे के तालाब तले  
जब मेरी सात साल कि बेटी बोली -
"देखो, बाबा वहाँ ट्रेन खड़ी है 
आओ हम उसमें चलें।"

"नहीं", मैं बोला,
"यहीं तक है हमारी हदें
हम नहीं लांघ सकते बॉर्डर 
और जाते सकते उस परे। "

छोटी सी मेरी बच्ची नहीं समझी 
चकित हो, वो पूछी, "कहाँ है बॉर्डर?
यही जमीन फैली है वहाँ से यहाँ
क्यूँ नहीं जा सकते हम वहाँ?"

मैंने जितना चाहा उसे सीमा दिखाना 
उतना ही उसने भी चाहा मुझे मुद्दा समझाना । 
कैसे भी वो समझने वाली नहीं थी 
कैसे भी वो मानने वाली नहीं थी । 

अपने मन ही में, मैं बोला 
तुम हो एक मासूम बच्ची 
और इसीलिए, हा  
तुम नहीं जानती 
कहाँ बस्ते हैं बॉर्डर !
अगर तुम बड़ी होती तो देख पाती -
बॉर्डर बताते खम्बे 
उतना दीखते नहीं बाहर खड़े 
जितना इंसानों के मन भीतर छुपे ।

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