tr from Anmole Prasad's English tr of Rajendra Bhandari's Nepali poem, 'Time Does Not Pass'. From Dancing Earth: An Anthology of Poetry from North-East India, pg. 25-26, 2009.
दादा, खेतों तक जा पाये उतने सक्षम नहीं रहे
पिछले बरस, छड़ी लिए वो चौक तक पहुँच जाते थे,
इस बार बस बरामदे तक जा पाये।
तीन दिन कारावास के बाद, दादा गुज़र गए।
दादी गुज़र गई ।
फिर माँ मुरझाने लगी
पहले पहल, वो बाजार से अलग हुई,
फिर चौक से आँगन में सिमटी।
आँगन से वो चौक में सूखते दाने के लिए हौवा बनी।
उसकी आँख से रोशनी चली गयी
उसके पैरों से, खड़े होने की ताकत
फिर जैसे जैसे उसकी तमन्नायें जाने लगी
वो खुद-ब-खुद गुज़र गयी ।
एक दिन, एक बनैली लड़की ने मुझसे छेड़-छाड़ की
पर शांत तालाब के माफिक, मैं किनारे रहा।
मेरा यौवन गुज़र रहा था।
पीले पतझड़ में, खेतों में
धान भूसा बन रहा था,
फसल खाद बन चुकी है
दुनिया हर रोज़ अपने आप गुज़र रही है।
वातावरण ओजोन के मुँह जा रहा है।
मुरझाते फूलों और सुखी पत्तियों के साथ
पत्ती और शाख़ का मुरझाना,
कली और फूल का मुरझाना,
इन बिदाईयों के बाद
दबंग कमल भी धरती से मिट गए।
पर वक्त नहीं गुज़रा
वक्त अब है ही नहीं
वक्त गुज़रता, अगर होता थोड़ा भी ।
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