कभी कभी लगता है,
कि; ये दिल गुब्बारा होता है
खाली हो तो लंबा मुंह करता है
और भर दो तो मुटल्ला हो तनता है
पहले पहले तुम्हारे चाहने पर
कभी अकड़ता तो कभी सिमटता है
एक हद के बाद
गुब्बारा भी विरोध करता है
कि; ये दिल गुब्बारा होता है
खाली हो तो लंबा मुंह करता है
और भर दो तो मुटल्ला हो तनता है
पहले पहले तुम्हारे चाहने पर
कभी अकड़ता तो कभी सिमटता है
एक हद के बाद
गुब्बारा भी विरोध करता है
2 comments:
excellent..:)
isnt writing therapeutic?
:) Feel like taking a long breath and sitting with these lines on the corner of a ravine...staring into the endless orange sky...and rest this dil gubbara a bit. :)
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