Wednesday, 11 April 2012

सब्र करो राधे आज

राधाजी अब तो, तुम ही कहो क्या राज?
बोले थे कान्हा, कैसे, 'राधे, सब्र करो तुम आज'?
राधाजी अब तो, तुम ही कहो क्या राज?

सखी री तुम से, कैसे, कह दूं सारी बात?
सब्र कि पाथी ना खोले ना बंद हो
कान्हा की बंसी थिरके जब मधुमास
सखी री तुमसे, कैसे, कह दूं सारी बात?

राधाजी अब तो, तुम ही कहो क्या राज़
बोले थे कान्हा, कैसे, 'राधे, सब्र करो तुम आज
'

सखी री तुम से, कैसे, कह दूं सारी बात?
लाज की गठरी में बाँध के बैठी
मतवाले मंझीरे का साज
और कान्हा तुम्हारे कहते हैं मुझसे
'राधे, सब्र करो तुम आज'
सखी री तुम से, कैसे, कह दूं सारी बात?

राधाजी अब तो, तुम ही कहो क्या राज़
बोले थे कान्हा, कैसे, 'राधे, सब्र करो तुम आज'


सखी री तुम से, कैसे, कह दूं सारी बात?
वो जब चाहे तब छु जाए मुझ मीरा की हर सांस
बैठे हैं देखो डाले किसके हाथो में दोनो हाथ
हरजाई कहते हैं मुझसे, 'राधे, सब्र करो तुम आज'
सखी री तुम से, कैसे, कह दूं सारी बात?

राधाजी अब तो, तुम ही कहो क्या राज़
बोले थे कान्हा, कैसे, 'राधे, सब्र करो तुम आज'


सखी री तुम से, कैसे, कह दूं सारी बात?
प्रेम में रीती लाज कि पाथी
सब्र की गठरी ढूंढ ना पाती
उनकी मर्यादा जब बंधन बन जाए

विमुख मन कैसे कृष्ण संग रास रचाए
साफ़ साफ़ जो कुछ भी ना बोले
बस करें इशारे मुझे बुलाये
मैं बावरी जानूं समझूं
प्रेम में दूरी भी लगती साथ
एक पग आगे, एक पग पीछे
कैसे रुकूं मैं आज?
बोलेंगे कान्हा, 'राधे, सब्र करो तुम आज'
सखी री, कैसे, उनसे कह दूं सारी बात?

Monday, 9 April 2012

retreat

seamlessly, easing out,
invisibly
in times that will now reminisce
of the time that passed by
strange pleasure in this
not knowing
not seeking
a collected self splintered now in multitudes
showing gravity its place
as i walk from this place to that
inside
outside
you were right
there are many forms of retreat
and mine began
while you were scribbling a discreet dream.