इन शब्दो की अजब माया है
कभी कविता बन बहते हैं
और कभी चुप्पी की कसक सहते हैं,
और ये चुप्पी भी कम नहीं,
कभी विराम दे आलिंगन सी चहकती है
और कभी शब्दो से अलग थलग सुलगती है
एक आगाज़ तो दूसरा मौन
समझ नहीं आता की
घुसपैठिया कौन!
कभी कविता बन बहते हैं
और कभी चुप्पी की कसक सहते हैं,
और ये चुप्पी भी कम नहीं,
कभी विराम दे आलिंगन सी चहकती है
और कभी शब्दो से अलग थलग सुलगती है
एक आगाज़ तो दूसरा मौन
समझ नहीं आता की
घुसपैठिया कौन!