सुनो, क्या तुमने आहट को देखा है?
आहाते में हंसी ठट्ठा करती,
हवा से नोक जोख कर,
दरवाजो के मुंह पर तनकर खड़ी होती;
जैसे ललकार रही हो - क्यूँ चुप हो बाहर आओ,
और; जब मैं मुंडेर से नीचे झाँख
अपने किसी खोये ख़याल से रूबरू होने की आस में
नीचे जाती, तो वही आहट झट से चुप्पी ओढ़ लेती;
और गर्मियो में हमारे बीच ये लुक्का चुप्पी का खेल
वैसा ही हो जाता
जैसे बदलाव के सपने देखती जनता का,
दिल्ली के तुनकमिजाज़ सरमयादारो से होता है;
जिनके लिए कब कोई अन्ना ख़ास हो जाए,
या कब कोई मेधा पीछे छूट जाए;
इस तानेबाने को समझने में,
पसीने से तरोब्दार आम आदमी
केवल तिलस्मी बदलाव के सपने देखते रह जाता है;
और हक्काबक्का हो, मिडिया के सवालो पर कान गडाता है.
हर खबर जब आम भी हो और खास भी;
हर कहानी जब किसी का गुणगान भी हो'
और किसी से नाराज़ भी,
हेड्लाईनो में खुद को ढूँढता सा आम ये आदमी,
'मिडल क्लास' के बानगी खुद को नज़रबंद पाता है
तब कुलबुलाता हुआ हरारत से,
मुठी बंद हाथो को नारो के जोश में धकेलता हुआ;
'नज़रबंदी में हरकत जरूरी है'
ये समझता हुआ, समझाता हुआ,
निकल पड़ता है आहट बनकर मजबूत दरवाजो से भीड़ जाने;
कभी चीख कर, कभी चुप्पी से तो कभी किसी नई हलचल से चौकाने,
अभी अभी खबर मिली किसी ने फिर से १४४ की निष्ठुर-रेखा को उठा फेंका है,
सुनो, क्या तुमने आहट को देखा है?
आहाते में हंसी ठट्ठा करती,
हवा से नोक जोख कर,
दरवाजो के मुंह पर तनकर खड़ी होती;
जैसे ललकार रही हो - क्यूँ चुप हो बाहर आओ,
और; जब मैं मुंडेर से नीचे झाँख
अपने किसी खोये ख़याल से रूबरू होने की आस में
नीचे जाती, तो वही आहट झट से चुप्पी ओढ़ लेती;
और गर्मियो में हमारे बीच ये लुक्का चुप्पी का खेल
वैसा ही हो जाता
जैसे बदलाव के सपने देखती जनता का,
दिल्ली के तुनकमिजाज़ सरमयादारो से होता है;
जिनके लिए कब कोई अन्ना ख़ास हो जाए,
या कब कोई मेधा पीछे छूट जाए;
इस तानेबाने को समझने में,
पसीने से तरोब्दार आम आदमी
केवल तिलस्मी बदलाव के सपने देखते रह जाता है;
और हक्काबक्का हो, मिडिया के सवालो पर कान गडाता है.
हर खबर जब आम भी हो और खास भी;
हर कहानी जब किसी का गुणगान भी हो'
और किसी से नाराज़ भी,
हेड्लाईनो में खुद को ढूँढता सा आम ये आदमी,
'मिडल क्लास' के बानगी खुद को नज़रबंद पाता है
तब कुलबुलाता हुआ हरारत से,
मुठी बंद हाथो को नारो के जोश में धकेलता हुआ;
'नज़रबंदी में हरकत जरूरी है'
ये समझता हुआ, समझाता हुआ,
निकल पड़ता है आहट बनकर मजबूत दरवाजो से भीड़ जाने;
कभी चीख कर, कभी चुप्पी से तो कभी किसी नई हलचल से चौकाने,
अभी अभी खबर मिली किसी ने फिर से १४४ की निष्ठुर-रेखा को उठा फेंका है,
सुनो, क्या तुमने आहट को देखा है?
3 comments:
bahut khoob likha hain ji
har line kuch kahti hain
ACHI LAGI APKI YE RACHNA. . . JAI HIND JAI BHARAT
thank you friends :)
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