Saturday, 25 June 2011

घुसपैठिया

इन शब्दो की अजब माया है
कभी कविता बन बहते हैं
और कभी चुप्पी की कसक सहते हैं,
और ये चुप्पी भी कम नहीं,
कभी विराम दे आलिंगन सी चहकती है
और कभी शब्दो से अलग थलग सुलगती है
एक आगाज़ तो दूसरा मौन
समझ नहीं आता की
घुसपैठिया कौन!

2 comments:

नीलांश said...

bahut sunder

dono hi saathi hai....

good wishes

Shalini Sharma said...

shukriya Nilansh :)