Wednesday 14 September 2011

कशमकश

आज बहुत देर अपने शहर को मैंने सुना
और; तुम बहुत याद आये,
तुम, जो साथ नहीं आये;
आते, तो मुझे वहीं पाते;
जहां ख़्वाबो का आशियाँ है;
आशियाँ वो, जो उस रात हमने बुना था;
जब दरमियान हमारे एक काफिला चला था;
काफिले में रंगीनियाँ थी;
रंगो में झूमते हमने उस शहर को चुना था;
आज बहुत देर अपने शहर को मैंने सुना,
और तुम बहुत याद आये;
तुम क्यूँ साथ नहीं आये?

1 comment:

Anonymous said...

sweet one
and full of memories