हाँ
नदी में तलब है,
धुंध बन शाखों पर सो जाने की;
जो है भी और नहीं भी,
फिर आगोशबंद
अज़ल उस लम्हे में खो जाने की;
जो हाज़िर भी हो और नाज़िश भी...
नदी में तलब है,
धुंध बन शाखों पर सो जाने की;
जो है भी और नहीं भी,
फिर आगोशबंद
अज़ल उस लम्हे में खो जाने की;
जो हाज़िर भी हो और नाज़िश भी...