Tuesday, 16 October 2018

तुम कब सीखोगे?

वो अकबर गुज़र गये,
जो अनारकली को दिवारों में चुनवा
तख्तनशीं रहे।
पर अनारकली के गीत,
दुर्गा की हुँकार का
वक़्त नही गुज़रता।
गवाह? अजी मेरी ज़मीं
- अच्छे दिन, ओछी हरकत
का बयानामा यहीं।
फिर ना कहना किसी ने समझाया नहीं
रेत, ग़ारा, ईंट लाते तुम्हे
मिट्टी-पलीत होने का मंज़र
दिखाया नहीं।

Monday, 2 July 2018

गंगा

एक नदी, कितनी राख
कब स्वाहा हुयी कहानियां
कुछ बह गयी
कुछ रह गयी 

उलझन

कल 
मेरे रुमाल की हर एक गाँठ
किसी ख़ास ख़्वाहिश की दास्ताँ थी
जिसमें तुम थे और मैं थी।
आज
खुली गाँठें, 
रुमाल की सिलवटों में
जिरह कर रहे हैं
जिसमे तुम हो और मैं भी।