Nutshell
Monday, 2 July 2018
उलझन
कल
मेरे रुमाल की हर एक गाँठ
किसी ख़ास ख़्वाहिश की दास्ताँ थी
जिसमें तुम थे और मैं थी।
आज
खुली गाँठें,
रुमाल की सिलवटों में
जिरह कर रहे हैं
जिसमे तुम हो और मैं भी।
1 comment:
Anonymous said...
Subtle😢
9 June 2021 at 13:58
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1 comment:
Subtle😢
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