Sunday, 19 January 2020

तलब | ख़लल

आज बड़ी तलब है
तुम से बात करने की,
लफ़्ज़ों के लिहाफ़ मे लिपटी
मोहब्बते सिलसिलेवार नही उतरती,
धूप सी बिखर जाती हैं,
धान बन खिल उठती हैं,
खनकती हुई भीतर कहीं।
सोच थी मेरी
तुम तक पहुंचने की,
रूह से रूह को राहत है
रूमी की ऐसी रूमानी बातें
तलब को ख़लल कर गई।

2 comments:

Kalpana Bindu said...

Shalini very nice...talb ko khalab kar gayi
wah wah ..... Is it your own creation or a translation...

Shalini Sharma said...

Thanks Kalpana. This is original, not a translation.