आज बड़ी तलब है
तुम से बात करने की,
लफ़्ज़ों के लिहाफ़ मे लिपटी
मोहब्बते सिलसिलेवार नही उतरती,
धूप सी बिखर जाती हैं,
धान बन खिल उठती हैं,
खनकती हुई भीतर कहीं।
सोच थी मेरी
तुम तक पहुंचने की,
रूह से रूह को राहत है
रूमी की ऐसी रूमानी बातें
तलब को ख़लल कर गई।
तुम से बात करने की,
लफ़्ज़ों के लिहाफ़ मे लिपटी
मोहब्बते सिलसिलेवार नही उतरती,
धूप सी बिखर जाती हैं,
धान बन खिल उठती हैं,
खनकती हुई भीतर कहीं।
सोच थी मेरी
तुम तक पहुंचने की,
रूह से रूह को राहत है
रूमी की ऐसी रूमानी बातें
तलब को ख़लल कर गई।
2 comments:
Shalini very nice...talb ko khalab kar gayi
wah wah ..... Is it your own creation or a translation...
Thanks Kalpana. This is original, not a translation.
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