Thursday, 30 August 2012

प्रकृति और पुरुष

मैंने पूछा,
'क्या हाल चाल?'
तुमने कहा,
'जंगलों को देखो, कट गए, छट गए
जमीन और तालाब जाने कहाँ सिमट गए'
मैंने पूछा,
'और सब ठीक?'
तुमने कहा
'जुगनू, पतंगे, केंचुए सब कहीं खो गए
सूरज को ढूंढते, मुंह ढाप सब सो गए'
मैंने पूछा,
'कैसे हो?'
तुमने कहा,
'सब तरफ शोर है, हर मुंडेर एक मोर है
कौए कोयला खा गए, क्या रात क्या भौर है'

तुमने पूछा,
'ठीक हो?'
(तुमने पूछा, अच्छा लगा)
मैंने कहा,
मैंने कुछ नहीं कहा
प्रकृति क्या कहे, किससे?
जवाब सुनने के लिए कोई नही था..


No comments: