Friday, 8 May 2020

गर चाँद ना हो, तो क्या होगा?

महीने ना होंगे,
ठहरा हुआ समंदर होगा,
ना ज्वार-भाटे,
ना चमकीली रातें,
ना तारों की लुप्पा-छुप्पी,
ना चहरे, ना चंदा के तराने होंगे,
ग्रहण का डर होगा,
जगह नही, खड़े हो, देख सको
दुनिया का जी उठना।

(Hindi trans. of Rebecca Elson's What if there were no moon?)

Wednesday, 22 January 2020

Moving on

I
Memory maps
unfold to let go a drifter.
A question lingers -
how do you nourish (without) your
sources of affection, Mister?

II
(A friend responds)

A question lingers,
do you have a yen to nurture?
If yes, how did your hard edges come about?
I have been told, guess his affection, when in doubt.

Tuesday, 21 January 2020

बस इतनी सी बात है...


I
कुछ मोहब्बतें बिस्तर में सिमटती हैं,
कुछ रूह में उतरती है,
और कुछ बस खामाखाँ होती हैं,
क्या ही होता जो
मेरी रूह तेरा बिस्तर होती।

II
कुछ मोहब्बतें बिस्तर में सिमटती हैं,
कुछ रूह में उतरती है,
और कुछ बस खामाखाँ होती हैं,
कुछ इधर, कुछ उधर
तुम खामाखाँ ही हो,
ना इधर, ना उधर।

Sunday, 19 January 2020

तलब | ख़लल

आज बड़ी तलब है
तुम से बात करने की,
लफ़्ज़ों के लिहाफ़ मे लिपटी
मोहब्बते सिलसिलेवार नही उतरती,
धूप सी बिखर जाती हैं,
धान बन खिल उठती हैं,
खनकती हुई भीतर कहीं।
सोच थी मेरी
तुम तक पहुंचने की,
रूह से रूह को राहत है
रूमी की ऐसी रूमानी बातें
तलब को ख़लल कर गई।