फिर क्या,
शब्दो की व्यथा,
निरर्थक कथा;
अकेले खड़े
या, प्रांगन गढ़ा;
थिरकती कविता
कैसे बने;
जो कोई कहे,
कोई सुने
बीच कहीं,
नए रिश्ते बुने...
शब्दो की व्यथा,
निरर्थक कथा;
अकेले खड़े
या, प्रांगन गढ़ा;
थिरकती कविता
कैसे बने;
जो कोई कहे,
कोई सुने
बीच कहीं,
नए रिश्ते बुने...
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