tr. from Bishash Chaudhary's English tr. of Harekrishna Deka's Assamese poem 'Frog rains'
पिछले मानसून, हमारे इलाके में बरसात नहीं हुयी
मेंढकी बौछारें अभी तक पड़ रही है
पिछले मानसून, हमारे इलाके में बरसात नहीं हुयी
हमने मेंढ़कों की शादी करा दी थी,
याद है ? उल्लासपूर्ण नवविवाहित मेंढक-दम्पति सारे क्षेत्र में फुदकते रहे
वो क्षितिज़ के गहरे बादलों की ओर चले गए
हमने बादलों की चट्काहट नहीं सुनी
आख़िर, वो हमारे आकाश के बादल तो नहीं थे,
आख़िर, वो हमारे आकाश के बादल तो नहीं थे,
हमारी योजनायें (और हमारे अनुमान)
बिगड़ गए।
जैसे-जैसे आनंदमय मेंढ़क-जोडे दूर जाते रहे
हम आस लगाते रहे, और प्रार्थना करते रहे
मेंढक-दुल्हनें, लाखों, उम्मीद से हों।
आज, आकाश है बादलों भरा
क्या तुम सुनते हो कडकडाना ?
असाधारण बारिश होगी इस साल, कहता है ज्योतिषी
हमने अब सुना, पहले कभी ना सा, गडगडाना।
देखो, बरसात आ रही है
लगभग, ओला-वृष्टि ! हमारी छतों,
सड़कों, और पहाड़ियों पर भी
सड़कों, और पहाड़ियों पर भी
ये आवाज़ है मुसलाधार बारिश की
पर नहीं --
ये है मेंढकी बरसात
मेंढक-दुल्हनें अब माँ है
गर्भ के चिकने सुकून में पले लाखों की
मेंढक-दुल्हनें अब माँ है
गर्भ के चिकने सुकून में पले लाखों की
हजारों, और हजारों नवजात मेंढक
आ रहे हैं,
मेंढकी बरसात के साथ।
उनके चेहरों पर साफ़ दीखते हैं नयी योजनाओं के निशान,
लिए नए आंकलनों को,
हमारे सिरों पर मंडराते मेंढक झुण्ड
हम अब समर्पण कर रहे हैं नए समय को।
आने वाले बढ़िया समय हेतु
जारी हैं मेंढकी-योजनायें,
रस्म-स्वरूपी और मंत्रों जैसी
रटकर प्रचारित होती।
मेंढकी बौछारें अभी तक पड़ रही है
पीटते, चोट खाते, बरसातों में भींग रहे हैं हम।
(thanks to Himanshu Upadhyaya, Sonu Hari)
(thanks to Himanshu Upadhyaya, Sonu Hari)
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