Wednesday, 9 October 2013

अपील

tr. from Mizo Poet Cherrie L. Chhangte's English Poem 'Plea', from The Oxford Anthology of Writings From North-East India, pg. 75, 2011.

समझो मुझको।
मैं चाहूँगी बने रहना एक नारी
ना प्रतिमा, ना परछाई।
हाड़-मांस का शरीर
जिस संग हो इंसानी कमज़ोरी
और, इंसानी भावनायें भी। 

पुराणों से निकालो मुझको।
मेरे कबीले का प्रतिनिधि नहीं,
मैं चाहूँगी बने रहना एक इंसान;
अहंवादी और स्वार्थी
जिसके हों निजी भेद
और, निजी जरूरतें भी।

सँभालो खुद को ।
दिलचस्प पहेली नही,
मैं चाहूँगी बने रहना कोई खुली किताब;
और, ग़र इसमें हो तुम्हारी मनाही
तो पहुँच पाऊँ उस पार, 
पाट हमारे बीच की खाई।

बदलो खुद को ।
फ़ेंक दो धारणाएं और अनुमान,
करते हुए अलग अतीत से वर्तमान
रीति, रिवाजों, और विद्याओं की धरोहर,
स्मृति का कोई धुंधला ख़याल नहीं
मैं चाहूँगी बने रहना एक जमीनी सच्चाई। 

1 comment:

Sonu yadav said...

last line, so motivational... nice job.