दस उँगलियाँ,
दो मुट्ठी
और, हर मुट्ठी में
उबलती संवेदना;
कभी इधर लुढ़कती;
कभी उधर ठुलकती;
सुलगती उँगलियो के बीच,
बाहर निकलने को पलटती;
लाखो बिलखती चींटियाँ
करंट बनके दौड़ती;
हर नृशंश अत्याचार की
कहानी को जोडती;
दमन के विरोध में
उठेंगी हथेलियाँ;
'इन्कलाब जिंदाबाद'
गाते चल पड़ेंगे मस्ताने बेलियाँ;
ताले लगाओ या पहरे बिठाओ,
फौलादी किलो में
कब बंदी बनी संवेदना;
जनम से ही सीखा जिसने,
चक्रव्यूह को भेदना
इतराते हो अपनी
ताकत पर बहुत तुम;
ज़माना देखेगा अब,
बंद मुट्ठियो का बोलना,
'दम है तो रोक कर दिखाओ ,
मेरी आत्मा का मुझे झकझोरना !'
दो मुट्ठी
और, हर मुट्ठी में
उबलती संवेदना;
कभी इधर लुढ़कती;
कभी उधर ठुलकती;
सुलगती उँगलियो के बीच,
बाहर निकलने को पलटती;
लाखो बिलखती चींटियाँ
करंट बनके दौड़ती;
हर नृशंश अत्याचार की
कहानी को जोडती;
दमन के विरोध में
उठेंगी हथेलियाँ;
'इन्कलाब जिंदाबाद'
गाते चल पड़ेंगे मस्ताने बेलियाँ;
ताले लगाओ या पहरे बिठाओ,
फौलादी किलो में
कब बंदी बनी संवेदना;
जनम से ही सीखा जिसने,
चक्रव्यूह को भेदना
इतराते हो अपनी
ताकत पर बहुत तुम;
ज़माना देखेगा अब,
बंद मुट्ठियो का बोलना,
'दम है तो रोक कर दिखाओ ,
मेरी आत्मा का मुझे झकझोरना !'
8 comments:
प्रबल विद्रोह
kuch samajh mein nahi aaya... translate kyun nahi kar dete....
Selva i'm not sure if i can translate this in English. But, possibly Darshan may explain this to you or any other hindi speaking friend.
nice
सुपर्ब.. प्योर आसमनेस.. adding you to my feed reader..
Please remove the word verification so that readers can conveniently comment on the posts..
Seriously awesome poem Shalini :)
muthiyon mein kab band thee samvedna.....
Very very nice Shalini... hats off to you :-)
आक्रोश या यथार्थ ..
ज्वलनशील शब्दों का अग्निमय प्रवाह !! :)
सच कहा है आखिर में कि
"दम है तो रोक कर दिखाओ मेरी आत्मा का मुझे झकझोरना "
मानवीय शक्तियों से परे है आत्मा के झकझोरने की दास्ताँ ..
सुन्दर !!
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