Wednesday, 23 December 2009

real heroines and masculine spirits

i hear the chime
dreams lidded eyes
my heart docile
'i believe in you'
with don williams,
i hummed meanwhile
but now i
see through this mime;
with a green light on
i saw you were still typing
and it had been
a long long time;
i confer gtalk too inherits
your masculine spirits
so; my dear
as you weigh your choices
to standby love or without
like real heroines
I sign out.

Tuesday, 22 December 2009

lullaby


o, lovers of the world
sing me a lullaby
that; I may rise and shine,
forgo what was once mine
and; unlike our lot
not rebound,
to ruin yet another page in a rhyme!

Thursday, 3 December 2009

Bhopal, tell me how do you feel at 25?

Oh Bhopal
Tell me, how do you feel at 25;
when the youth doesn't kick in
and the years don't add to age;
when the wisdom u gain
make u renew your vows;
and hope in vain
perhaps; this would be the year
when thousands,
won't be betrayed all over again;
Perhaps; this would be the year
with no March to Delhi;
no wilful release of toxics in body;
no hunger strikes;
and no rally.
Bhopal
Tell me, how do you feel at 25;
when you already fathered kids
who look as old and weak as you
embittered;
disillusioned
with their own land and law
challenging the human element of Dow
seemingly; no one to turn to;
and nowhere to go
yet, they,not the stillborns
and theirs,not the aborted woe
with umbilical cord
held tight in their hands
to not despair;
to not let go...
sheltered now in their hope and struggle
Oh, Bhopal
Tell me, how do you feel at 25?


Monday, 30 November 2009

लुक्काछुप्पी

सर्दियो की हसीं रात थी;
चाँद घुमने निकला,
और चांदनी भी साथ थी;
ताज़ी हवा जैसी उसकी तासीर भी;
मदमस्त आँखें; और मस्ती भरे दिल की
कुछ शरारत से चाँद ने;
थामी उसकी कलाई,
चांदनी थोड़ा झिझकी; थोड़ा शरमाई,
चाँद बोला;
ऐसा क्या है, हर रोज़
रात भर चक्कर काट ;
क्यूँ तुम्हारे ही पास आता हूँ?
सब जगह ढूँढू, पर सुकून यहीं पाता हूँ?
चांदनी चुप थी,
हाथो में हाथ ले
आँख नीची; सांसो को बांधे;
थोड़ी लजायी;
थोड़ी सिमटी सी,
चाँद को निहारती रही,
मानो उसका बोलना ही;
उस रात की खुबसुरती थी
चाँद ने फ़िर कहा,
'बोलो तो;
कुछ जवाब तो दो'
चांदनी चुप रही
'देखो तुम्हारे हाथ में;
मेरा ही नाम लिखा है,
दुआ में जो उठे वो,
उनमें मेरा ही चेहरा खिला है'
चांदनी की चुप्पी से;
चाँद रूठ कर बोला,
'कुछ कहो तो?
तुम्हारे लिए ही,
मैंने हर हद तोड़ दी;
तुम्हे रिझाने को,
हर सूरत भी मोल ली;
इश्क में जहाँ सख्त
रस्मो रिवाजो का साया है,
कहाँ हर चाँद ने चांदनी को अपनाया है?
जानकर, चाँद समझेगा नही
चांदनी बोली,
'लफ़्ज़ो में कह दूँ,
ऐसा तो ये राज़ नही;
चार मिसालो में बयान हो;
ऐसा ये साथ नही;
पर्दों मैं बाँध कर हया की मंजिले
चाहते हो, ये मेरा मुस्तकबिल बने?
जिन रस्मो को तुमने लिखा
उन्हीं में तो बंधी हूँ
शिकायत फ़िर भी मुझसे
क्यूँ मैं चुप खड़ी हूँ
इश्क का कोई बयानमा नही
तुम हो यहाँ, और मैं भी यहीं;
इसी पल में जो ख़ामोशी थमी
वही है धडकनो की लुक्का छुप्पी'

Friday, 20 November 2009

a bit random

In a random mood
when u come to me
and sit still
holding the words in a queue,
biding your time;
you don't notice
I am merged in
some far away point;
embracing your gaze
without much ado.
You look ahead
at the future we can make;
and, i re live the past
we built together,
moments gone
in the spur of moments;
and so,
like the final act of a play
as you take my hand in yours;
and tell me how magical this bliss is
i wonder if this togetherness is here to stay.

Tuesday, 10 November 2009

खुदा

आज राह में, मेरा खुदा खो गया
कब हुआ, कैसे?
ये न पूछो मुझे
दोस्तो याद थी, सारी हिदायतें;
कबूल भी थी हमें,
वक्त की रवायतें;
पर कहानी ये कोइ,
नई तो नही;
तुम न पूछो मुझे;
क्या गलत क्या सही
संभाल कर ही तो मैंने,
बढाया कदम;
रंगीली खुमारी,
ने जब दाए सितम;
बेकस यकीन था;
बेखुद जबान,
सुनाया अचानक;
रुखसती का फरमान,
अभी जरा सा उछला ही था, दिल मेरा;
इश्क कमबख्त ने जब पलट दी निगाह
खुद तो कुछ किया ही नही;
उसने जो कहा बस सूना था वही,
वो चला तो रेत पे;
जैसे बन गए निशाँ,
निशानो से हकीकत का;
तय किया फासला,
बड़ी देर तक मन में,
चली ये जिरेह
वो वहां था,
और हम खड़े थे यहाँ;
टुकडो में आईना;
था, दरमियाँ
खुद को तो जाना,
यार को भी जान लिया;
और; नामालूम कैसे,
इस गुफ्तगू में;
अपना खुदा पा लिया

Saturday, 17 October 2009

पेंटोंविल्ले सड़क


लन्दन के कमरे में
४ * २ की खिड़की
टकटकी बाँध के निहारती
एक अदद सड़क
किंग्स क्रॉस से एंजेल जाते लोग;
कहीं जाते, कहीं से आते लोग
सुबह भी, शाम भी, रात में भी;
जागती सी सड़क
बादलो की छेड़छाड़,
हवाओं से तकरार,
बारिशो में
पानी झटक,बिजली सी दौड़ती कारो से;
पंगे लेती
लड़ कर, झगड़ कर
पैदल राहगीर को थाम,
साइकिल को भी जगह देती
पेंटोंविल्ले सड़क,
अब इस सड़क से पहचान लगती है
कुछ खास, कुछ आम, तमाम बात लगती है

Sunday, 2 August 2009

इश्क और मुश्क

ये फुरसतों का दौर है
ना ज़ार है, ना ज़ोर है
ये तंग रात पहेलियाँ
हमनवा हथेलियाँ
ये गुमशुदा हालात है
चंद हाथ थम गई
वफ़ा की वो सौगात है
तलाशियां हुई जहाँ
सिलसिले ना रुक सके
जो मय कदम बढ़ चले
उस मुफलिसी का दौर है
यहाँ मुखबिरो का शोर है
ना आम है, ना आदमी
ना राहतो को आज़मी
निजाम की ये हरकतें
तंग हसरतो का जाल है
फिराक ना, विसाल ही
उस इश्क का ज़माल है
जो मुश्क की मिसाल है!

Thursday, 9 July 2009

Be Friends with...


Friends i adore you,
you held my bits and pieces
like the warmth enveloped in folded sheets
Yet, I wonder
where are you now
as i run in these narrow streets,
to tell you the truth;
it comes much as a surprise
how you see my strengths,
and hear none of my cries.
you label me in colorful confines,
i wish i had a better language
to paint futility of such public tag lines;
possibly the crisis you see in me is true
perhaps in my vulnerability
i disappoint you in ways i can never outdo
yet i hope that some day you will hear my plea
and be friends with the most mediocre in me!

seduction


in each of my heartbeat
i live your tantrums
with each of my heartaches
i re-live them
amidst much salsa and jazz
i dance to be sane
while,
infinite possibilities
between the two
seduce me all over again

Sunday, 14 June 2009

गर्मी

झुलसा सा दिन,
और उमस भरी रात;
आम के पत्तो में,
ओस बेठी उदास;
फिर क्या था,
कव्वो ने भी;
चुप्पी साधी,
मैना का अब;
संगी न साथी,
आँगन में;
मूढा भी तुनका,
मुश्किल है अब;
खाना फुल्का,
पानी का भी;
राशन होता,
बिजली बचत का;
भाषण होता,
गर्मी में सब;
यही फरमाते,
कब हो बारिश,
कब निकले छाते!

cocktails n dreams!

Between cocktails and dreams
I drift along the margins
surreal fancies
masked realities
the need to find the meaning
and the meaning in the need
as pleasures go high on grief
i need not renew my vows
the promise remains
as it always was
cheering life and its schemes
between cocktails and dreams!

Sunday, 31 May 2009

तुम?

अच्छा तो अब,
अठकेलियाँ करती रातो के साथ
तुम भी इठलाते हो?
माना बहुत तेज हो,
बहती हवा जैसे;
पल में धुआं सा उड़ जाते हो,
लाख बार समझाने पर भी;
मन की ओट में;
अपनी जगह बनाते हो,
हाँ हाँ जानती हूँ,
तुम नखरा नही दिखाते,
पर सामने भी तो नही आते,
बस धीमे से;
उँगलियाँ चटखाते हो,
जानते हो,
मैंने चंदा से भी शिकायत की थी;
और तारो ने भी पहरेदारी की,
आख़िर कौन हो तुम
जो नैनो में
मस्तियाँ भर जाते हो?

Wednesday, 27 May 2009

फ़िर मतदान!

लो ये भी कोई बात हुई,
दो साल बाद बिनायक सेन
बेल पे आजाद हुए;
और जावेद इकबाल नज़रबंद,
भोपाल को कमीशन का
वायेदा मिला,
और छत्तीसगढ़ को सलवा जादुम;
आजाद भारत में,
तिब्बत की आज़ादी का उड़ा माखौल;
सरकारी कारयालो में
अब इंसानी जिंदगी का तौल मौल,
फ़िर भी हर बार होता है;
जुनून-ऐ- नया दौर,
और तमाम राजनैतिक दल
करते हैं बहुत शोर,
आख़िर किस की सरपरस्ती में देश चला;
राहुल से लेकर मायावती तक,
बताओ तो यहाँ कौन है भला;
जंतर मंतर पे कार्बाईड की गैस खाया;
बच्चा आठ महीनो तक
प्रधानमंत्री के दर्शन को रोता है,
लेकिन उनसे मिलने का अहो भाग्ये तो
केवल टाटा-दोउ-अम्बानी को सुलभ होता है,
फ़िर भी ब्लैकमेल प्रूफ़ हो इतिहास ख़ुद को दोहराता है;
आम आदमी खाली हाथ किस्मत कोसता रह जाता है,
और शून्ये से शुरआत हो जैसे;
युवा भारत पे टकटकी लगाता है

Tuesday, 26 May 2009

एक बात

एक बात तो बताओ,
हंसी के पैमानो में
मुझे तौलने से पहले
क्या तुमने पैमाना तौला था?
वो दोनो तरफ से खाली था,
जैसे बेफिक्र कोई सवाली हो?
या एक और से चमकता था,
मानो नोट कोई जाली हो?
एक बात तो बताओ,
जब मेरी हसीं से हँसते थे तुम,
तो आँसू कोई देखा था?
वो जो पलक से थमता भी नहीं,
झलक गिरता है;
और वो जो पलक में सँवरता भी नहीं,
फलक सिमटता है
चलो रहने दो, बस;
एक बात तो बताओ,
वो दिन रात था,
या वो रात दिन?
रेत का निशाँ था,
या चाँद चांदनी बिन
रास्तो पे आस थी,
या मंजर कोई हसीं?
मालूम हो,
हथेलियो पे जाम था,
फिर क्यूँ साकी
था सच नहीं?

Sunday, 10 May 2009

Hypothetical Heroes

I remember a dear friend
telling me,
'learn to read the silences,
no words are needed;
when actions ring,
you are loved dearly,
and silences sing.'
I marveled at his wisdom,
I cherished this verse;
like Alice,
I walked with hypothetical heroes
in a parallel universe.
You know ,
I belong to Jane Austen's world,
and so one day I met someone,
who wasn't a duke
who wasn't a duke's friend either
he didn't mention pride,
and prejudice neither.
I was overwhelmed,
he looked so strong,
he smelled of courage;
so I followed my heart's song.
He delighted in the joy,
yet spoke of his fears;
It was unusual something,
he said, he didn't share with his peers;
he wondered why,
he has untouched shores,
with no space and closed doors,
we walked hand in hand,
and he led me to a place,
I was touched
and I was delighted
The canopy was thick
flowers were wild,
colours were bright;
and breeze was mild,
this 'garden of peace' he called his heart
I was there and I was his part.
Butterflies fluttered,
cuckoos called;
I basked in this beauty,
fumbled and stalled
'love is a leap,
I heard someone say.
Did you mean that I can stay
Forever and a day?.'
He gleamed,
and he smiled,
I saw a twinkle;
as he replied,
'Oh, stay you can't,
but you can come again;
You are a special friend,
and I love to entertain.'
He took me by hand,
and read me a verse;
Hypothetical heroes
in a parallel universe.
So you see my friend,
I don't know if silences sing
words are true and actions can ring
But for sure I gained some insight
that murky night when silences sighed!

Sequel

Yes,
I didn't forget our togetherness
and I didn't discard the happiness in it
both however hypothetical
Yet,
I deserve an explanation
though you would say
silence speaks
But,
I didn't forget our togetherness
and I didn't discard the happiness in it
So,
despite the longings and the pains
the sequel to love awaits
hypothetical heroes in a parallel universe!

Saturday, 21 March 2009

मेरा आसमां


Photograph by Sridevi Panikkar

जाने क्यूँ
बार बार दिल मचलता है उड़ने को;
मगर न जाने मेरा आसमां कहाँ है!
सब कुछ ठहरा हुआ सा लगता है,
कुछ रुका, कुछ सहमा हुआ सा लगता है;
देखो, वो पलाश पर ओस अभी भी सो रही है;
मानो; उसका ये सुकून एक सच हो,
होता होगा शायद एक समाँ ऐसा भी,
जहाँ बेफिक्र हो नींद की गोद में बेठा जा सके;
मगर न जाने मेरा वो जहाँ कहाँ है!
पल पल मचलता ये मन;
मानता ही नही,
कि; ये बड़े लोगो की दुनिया है
ऊँचे मंसूबो, ऊँची बातो की दुनिया है
कूदाले मारता है ये तो,
रेत के घर बनाने को;
दरिया में नहाने को;
गुडिया को सजाने को;
कैसे समझाऊँ इसे
कि; नही जानती मैं,
मासूम ख़्वाबो का ख्वाबगाह कहाँ है
फिर भी, न जाने क्यूँ;
बार बार दिल मचलता है उड़ने को
मगर न जाने मेरा आसमां कहाँ है!
नए नए अफसानो से सजी आँखें
कितनी खुशी से रोती हैं;
पल में मरती और पल ही में जीती हैं;
अजीब है, मगर है
हसीं इस जिन्दगी में;
सब कुछ सच है,
और; सब कुछ एक धोखा है;
हसरतो को झूमने से
नही किसी ने रोका है,
बस बात इतनी सी;
खुशियो के दरवाजे पर
एक बड़ा सा ताला है,
आज़ादी है;
अपने अन्दर के इंसान को बाँधने की
चुप रहकर सहना ही;
शायद सभ्यता की परिभाषा है,
फिर भी तमाम बंदिशों के साथ
जी सकने की दिल में एक आशा हैं
ठहराव में दर्द तो है बहुत,
मगर कारवां छोड़;
अकेले इसे सहने का होसला भी कहाँ है
जिन्दगी के साथ,
जिन्दगी के लिए;
जिन्दगी को ढूँढती हूँ मैं;
मगर जिन्दगी क्या है इसका बयाँ ही कहाँ हैं
फिर भी, न जाने क्यूँ;
बार बार दिल मचलता है उड़ने को,
मगर न जाने मेरा आसमां कहाँ है!

Tuesday, 17 March 2009

कल शाम

कल शाम;
कारें भी मुस्कुरा रही थी,
सड़कों में भी अलग सी चमक थी;
दुकाने भी जैसे लपक के झपक के कुछ बता रही थी,
बिनायक सेन के वास्ते जंतर मंतर पर;
हम गीत गा रहे थे,
और उन्हें सुनते सुनते;
बगल में तिब्बत के तम्बू भी कुछ जता रहे थे,
अँधेरे में जगमाते बल्ब ;
हर एक मिनट में पाँच बस,
और हर बस में थकी थकी सी भीड़;
फुटपाथ से चिपकी धुल के साथ,
जैसे तूफ़ान को बुला रही थी;
शायद अपनी हस्ती में मस्त,
दिल्ली भी नया दौर गुनगुना रही थी;
कल शाम

Monday, 16 March 2009

Trap


left no more left,
right no more right;
centre not being the centre,
they rule with their might;
with full circle,
from front to behind;
I can't even opt to be non aligned!

Sunday, 15 March 2009

गुब्बारा

कभी कभी लगता है,
कि; ये दिल गुब्बारा होता है
खाली हो तो लंबा मुंह करता है
और भर दो तो मुटल्ला हो तनता है
पहले पहले तुम्हारे चाहने पर
कभी अकड़ता तो कभी सिमटता है
एक हद के बाद
गुब्बारा भी विरोध करता है

अब

अब,
गुलाल भी है,
भांग भी है,
प्यास भी हैं,
मैं भी और तुम भी
अनुराग भी है,
साथ भी है,
शाम भी है,
मैं भी और तुम भी...

Saturday, 14 March 2009

Parting Gift!

Thanks,
that you left
for you write;
so you see,
what delicious love
words make to me!

सिर्फ़ दूरी

कारवां चुने,
या तनहा रास्ता;
मंजिल भी रवां रवां,
ना हसरतो का भी वास्ता;
पर, एक शाम साथ साथ;
हंस देंगे हम कभी,
दूरियो का मतलब;
क्यूंकि फासले नही

I and You

These days friends often ask me,
'why do you stay up all night?'
How to answer when;
between,
now and then;
I float wondering...
was I the pause you needed,
to simmer in life or;
were you the punctuation
that brings in unknown delight?

?

ना सच ही सच है;
ना काला सफ़ेद,
दर्पण है कारण;
बनता रंगरेज़,
जो सोचा, जो समझा
पाया वही है;
पर है प्रशन,
क्या यही सही है?

दिल की बातें

दिल की बातें, दिल ही जाने
सोचे समझे, जाने अनजाने
रिश्तो की सीमा में बंधकर;
कोई कैसे रब को पहचाने,
अक्सर खामोशी के बयां में;
ये लब हँसते, ये लब रोते,
पाना ही जो होती चाहत,
पाकर ही शायद सब खोते,
फिर भी दिल में हसरत होती;
अपने भी होते अफ़साने,
दिल की बातें दिल ही जाने
होठो पे ठहरी सी बातें;
ख़्वाबो में सहमी सी रातें;
लश्कर में भी तन्हा होकर,
अपनो में सपनो को बांधे;
प्रीत मेरी जो गीत बने तो,
झूम उठेंगे सब परवाने;
दिल की बातें दिल ही जाने

कैसे कहूं?

photo by Pawas Bisht

ख्वाहिश की हाथ पर,
मेरा भी कोई चाँद हो;
रुख से नकाब हटे,
बेपर्दा मेरा भी ख्वाब हो,
बेपनाह चाहतो का,
काफिला तो साथ है;
मुख्तसर सी है मगर,
कैसे कहूं क्या बात है
आईने में जो देखा,
रकीब मेरा वो नही;
फासलो की हसरतो में,
अब करीब कोई नही;
दूर बेठे हंस रहे तुम,
पास आते क्यूँ नही?
क्या समझा, ख़ुद से अलग
मुझको, तुमने हयात है?
मुख्तसर सी है मगर,
कैसे कहूं क्या बात है
रात बहती जाए पर,
ठहरे कहाँ जज़्बात हैं!

Friday, 13 March 2009

Protest

Amidst banners, street actions;
die-ins and vigils;
you saw issues,
and made me another poster.
When thousands flocked,
hand in hand;
crisis marking every head,
I became faceless.
Drowning in endless,
cries and shouts;
slogans and promises,
every noise an opportunity;
you urged me to speak.
I looked at you;
you who were;
fighting from within,
cheering from margins;
guarding the fences,
and I also looked at you,
who were looking at me.
The choice is tough;
who leads whom,
and to what;
so silently protesting,
I enjoy my 'being' now!

Girls!

As we hurried to reach school,
crossing the river;
passing blue pool,
I remember you next to me.
Growing up,
a bit of swing;
and a bit of humph,
how to be the 'perfect she',
looking at mirror,
I remember you next to me.
Side by side;
in a crammed bus,
a man and his lust;
holding anger and disgust,
I remember you next to me.
Dealing confusions,
amidst illusions;
fighting fears,
surviving tears;
I remember you next to me.
Restless silence,
endless talks;
amidst celebrations,
through the failures;
in my waiting,
I remember you next to me.