Saturday 7 March 2009

नैना

देखो तो,
कैसे ये पल हैं,
हर पल मचलते से,
अरमानो की झाँकी
और इन नैनो में, हंसती
तुम नैना !
मन की डोर में,
ऊँचें ख़्वाबो की सेज,
सतरंगी मंच पर;
जुगनू सी डोलती,
जाने किस आस से चाँद को देखती;
और अपनी हसरतो में,
चांदनी को बांधती;
तुम नैना !
यूँ तो लाखो चकोर
चाँद को तरसते हैं,
लेकिन नैना के सपने तो;
केवल शैल से संवरते हैं,
तब है हासिल,
स्वाभिमान की दीप्ति;
इस गहरे सम्बन्ध की,
कहानी ही कीर्ति;
फिर भी यह दुनिया,
दिनो में, जिंदगी को तौलती है;
और, पलो से बेखबर;
पलो में, जिंदगी को खोती है,
अपनी तो इसलिए,
बस इतनी सी आरजू;
'क्यूँकी हर जाने वाला पल,
हमें आने वाले पल से जोड़ता है'
हर पल जिन्दगी के एहसास से मुस्कुराना,
तुम नैना !

1 comment:

Naina said...

:) Makes more and more sense and adds to my own personal meaning... as the years pass by.