Saturday 7 March 2009

दोस्ती

दोस्त की दोस्ती में वो सब देखा,
जो शायद अनदेखा कर जाती मैं
खुशी देखी, दर्द देखा;
नज़रो का चुराना देखा,
मिल कर भी न मिलना देखा;
हया देखी, बयां देखा
आंसूओं से कहके देखा,
जो शायद जबां से कह न पाती मैं
दोस्त की दोस्ती में वो सब देखा;
जो शायद अनदेखा कर जाती मैं
हसरतों की कब्र देखी, वफ़ा का दमन देखा;
विरह की तपन देखी, रुसवाई का चलन देखा;
जज़्बात की आंधी को, एहसास से देखा;
जिसके क़दमो की आहट को,
शायद पहचान न पाती मैं
दोस्त की दोस्ती में वो सब देखा,
जो शायद अनदेखा कर जाती मैं
किसी का उठना तो किसी का गिरना देखा;
भीड़ में भी हर किसी को तनहा देखा,
जुदाई की रात की अंगडाई देखी;
बातें हम्ख्याली की मगर तन्हाई देखी,
कारवां की हलचल में जो शायद सह भी जाती मैं;
दोस्त की दोस्ती में वो सब देखा;
जो शायद अनदेखा कर जाती मैं

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