Saturday 7 March 2009

कभी

कभी खुशी की तलाश में;
तो कभी गम से राहत की आस में
अपनी उन्ही तन्हाईयो से बचने के वास्ते,
मंजर सुनहरे जिनके, अंधेरे हैं रास्ते
खो गया तो क्या? पा लिया तो भी क्या?
खुरदरी हथेलियो पर माया का एहसास,
और;
भ्रम में जीते हम, हंसते बोलते ;
कभी रंग, कभी रास
मगर, फिर भी तनहा हम;
पलको से झांकते,
लगाये उम्मीद के कयास;
कभी खुशी की तलाश में,
तो कभी ग़म से राहत की आस में
कभी नाते बनायें;
माथे से लगाया,
सिन्दूर और बिंदिया से;
जीवन सजाया,
कोई हंसा तो, हँसे हम;
कोई रोया तो, रोये हम,
माँ ने कहा था, जब डोली उठी थी;
"बेटी जीवन वहीँ, संसार वहीँ है;
पिया का आँगन, उसका द्वार वहीँ है "
मगर, दिल एक हाथ का पंछी;
एक आस का भंवरा;
प्रीत तो चाही इसने,
किंतु; मीठी वाणी का स्वार्थ ना भाया;
बंधन की डोली में बेठा
किंतु; खुला आंसमां ना गया भुलाया
और, फिर उड़ा ये;
दूर बहुत दूर तलक,
अरमानो के मंच पर;
संजोये चाहतो का आशियाना,
कभी खुशी की तलाश में;
तो कभी ग़म से राहत की आस में

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