Photograph by Sridevi Panikkar
न जाने क्यूँ
बार बार दिल मचलता है उड़ने को;
मगर न जाने मेरा आसमां कहाँ है!
सब कुछ ठहरा हुआ सा लगता है,
कुछ रुका, कुछ सहमा हुआ सा लगता है;
देखो, वो पलाश पर ओस अभी भी सो रही है;
मानो; उसका ये सुकून एक सच हो,
होता होगा शायद एक समाँ ऐसा भी,
जहाँ बेफिक्र हो नींद की गोद में बेठा जा सके;
मगर न जाने मेरा वो जहाँ कहाँ है!
पल पल मचलता ये मन;
मानता ही नही,
कि; ये बड़े लोगो की दुनिया है
ऊँचे मंसूबो, ऊँची बातो की दुनिया है
कूदाले मारता है ये तो,
रेत के घर बनाने को;
दरिया में नहाने को;
गुडिया को सजाने को;
कैसे समझाऊँ इसे
कि; नही जानती मैं,
मासूम ख़्वाबो का ख्वाबगाह कहाँ है
फिर भी, न जाने क्यूँ;
बार बार दिल मचलता है उड़ने को
मगर न जाने मेरा आसमां कहाँ है!
नए नए अफसानो से सजी आँखें
कितनी खुशी से रोती हैं;
पल में मरती और पल ही में जीती हैं;
अजीब है, मगर है
हसीं इस जिन्दगी में;
सब कुछ सच है,
और; सब कुछ एक धोखा है;
हसरतो को झूमने से
नही किसी ने रोका है,
बस बात इतनी सी;
खुशियो के दरवाजे पर
एक बड़ा सा ताला है,
आज़ादी है;
अपने अन्दर के इंसान को बाँधने की
चुप रहकर सहना ही;
शायद सभ्यता की परिभाषा है,
फिर भी तमाम बंदिशों के साथ
जी सकने की दिल में एक आशा हैं
ठहराव में दर्द तो है बहुत,
मगर कारवां छोड़;
अकेले इसे सहने का होसला भी कहाँ है
जिन्दगी के साथ,
जिन्दगी के लिए;
जिन्दगी को ढूँढती हूँ मैं;
मगर जिन्दगी क्या है इसका बयाँ ही कहाँ हैं
फिर भी, न जाने क्यूँ;
बार बार दिल मचलता है उड़ने को,
मगर न जाने मेरा आसमां कहाँ है!